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प्रयोजनवती लक्षणा  : स्त्री० [सं० प्रयोजन+मतुप् वत्व,+ङीप्, प्रयोजनवती लक्षणा, व्यस्तपद] साहित्य में, लक्षणा का वह प्रकार या भेद जिसमें मुख्य अर्थ का बाध होने पर किसी विशेष प्रयोजन के लिए मुख्य अर्थ से संबद्ध किसी दूसरे अर्थ का ज्ञान कराया जाता है। जैसे—‘वह गाँव पानी में बसा है।’ इसलिए कहा जाता है कि वह गाँव किसी जलशय के किनारे पर या रई ओर पानी से घिरा हुआ होता है। यह लक्षणा दो प्रकार की होती है—गौणी और शुद्धा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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